बिहार के मधेपुरा जिले के गंगापुर गांव में मेरा जन्म हुआ. भागलपुर जिले के अति पिछड़े इलाके, एकचारी दियारा में पला बढ़ा, "संथाल जन-जाति का जीवन" बचपन से ही मेरे अंदर एक जबरदस्त रहस्यबोध, आकर्षण और रोमांच पैदा करता रहा. मेरे पिताजी का बड़ा योगदान है, मेरी कला यात्रा को आगे बढाने में. जब जी ऊब जाता तो पिताजी मुझे चित्र बनाने व कविता लिखने के लिए प्रेरित करते. तीन वर्ष की छोटी आयु से ही मैंने अपने-आपको रंगमंच पर पाया. पहला अभिनय कब और कहां किया था, ठीक-ठीक याद भी नहीं है. पांचवी कक्षा से ही बाल नाट्य मंडली का अघोषित रुप से निर्देशक बन गया. जनपद की आंचलिक भाषा 'अंगिका' में नाटक और कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया. छोटे-बड़े दर्जन भर नाटकों का गांव-गांव तकरीबन बिहार के सौ से ज्यादा जगहों पर मंचन किया. 19 वर्ष की आयु में अंग जनपद का लेखक व निर्देशक घोषित हो गया. 'अंगिका' भाषा का प्रथम नाटककार होने का गौरव प्राप्त हुआ. 'बिहार-दलित साहित्यकार अकादमी ने 'डॉ. अंबेडकर फ़ेलोशिप' देकर सम्मानित किया. इन्टर की पढा़ई के तुरंत बाद शिल्प, संगीत, नृत्य महाविद्यालय कलाकेन्द्र, भागलपुर से फ़ाइन आर्ट की प्रारंभिक कला शिक्षा की शुरुआत की.
कला केन्द्र में बचपन से अवचेतन में बसा देवदूत (संथाल आदिवासी) कोरे कागज पर तीर धनुष लिए उपस्थित हो गया.
संथाल आदिवासी एक दाम्पत्य जीवन
यह मेरा पहला तैल चित्र जो 1993 में बनाया,जिसे प्रथम राज्यस्तरीय पुरस्कार मिला.
बी.एच. यू में प्रवेश
बी.एच. यू में आते ही संघर्ष का दौर शुरु हो गया. बी.एच. यू प्रशासन ने प्रवेश परीक्षा रद्द कर दी.इसके खिलाफ़ हम लोगों ने अपने प्रवेश के लिये आंदोलन छेड़ दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट से 6 महीने तक केस लड़ने के बाद जीत हमारी हुई.
इस संघर्ष ने मेरे विचारों व्यवहारों व जीवन मूल्यों में बड़ा परिवर्तन किया. जो लोग यह उपदेश देते फ़िर रहें थे कि राजनीति गन्दीं चीज है इससे कलाकारों को बचना चाहिए. वही लोग सबसे घिनौनी राजनीति कर रहे थें.
रचना और आंदोलन
बी.एफ़.ए की पढ़ाई करते हुए कई अनसुलझे सवाल थें जैसे ......................... कला आखिर किसके लिये हो...... इसकी सेवा कैसे की जाए ?
इसी क्रम में 'जसम' के वरिष्ठ रंगकर्मी 'उदय' एवं 'समकालीन जनमत' के सम्पादक 'रामजी राय' से मुलाकात हुई . मेरे सवालों का जवाब मिल चुका था, रास्ता साफ़ दिखाई दे रहा था. बस सिर्फ़ चलने की जरुरत थी.
जीवन, रचना और आंदोलन
छात्र आंदोलन से उभरे कई कलाकार साथियों ने मिलकर 'कला-कम्युन' नाम से संस्था बनाई अब जीवन रचना और आंदोलन एक दुसरे के पर्याय बन गएं. जो आज कई वर्षों से जनता के बीच सांस्कृतिक गतिविधियां कर रही है. जो आज भी मुझे ऊर्जा प्रदान कर रही है.
माध्यम और रचना को लेकर मेरे विचार
मैं रचना के आधार पर माध्यम का चुनाव करता हुं न कि माध्यम के आधार पर रचना का.
मेरे मुर्तिशिल्प
आदिम लय-1 >
उक्त रचना में मैंने श्रम की गति, लय, सौन्दर्य, वात्सल्य और बाल हट दिखाने के साथ-साथ आदिम संस्कृति की अमर परम्परा को अक्षुण रखने हेतु नयी पीढ़ी के दायित्व का इशारा भी है.
आदिम लय-2
मदीरा पान आदिम संस्कृति का बहुत ही महत्त्वपुर्ण अंग है. उक्त रचना में मैंने मदीरा पान को positive sence में लिया है रचना के किसी उक्त भाव, लय, गति व मस्ती को दिखाने के लिए फ़ार्म के साथ प्रयोग किया है.
मदीरा पान आदिम संस्कृति का बहुत ही महत्त्वपुर्ण अंग है. उक्त रचना में मैंने मदीरा पान को positive sence में लिया है रचना के किसी उक्त भाव, लय, गति व मस्ती को दिखाने के लिए फ़ार्म के साथ प्रयोग किया है.
आदिम लय-3
उक्त रचना में श्रम करने जा रही दो आदिवासी युवतियों के माध्यम से श्रम के सौन्दर्य को ज्यादा मुखर दिखाने का प्रयास किया है.चेहरे पर आशा का भाव हाथ में आगे की ओर लहराते हसिया व खुरपी के माध्यम से अपने अधिकारों के प्रति लड़ने की तरफ़ एक इशारा है.
आदिम लय-4
उक्त रचना में श्रम, शिकार, संगीत और प्रेम को प्रकृति के साथ तादात्म स्थापित कर आदिवसियों के जीवन की वास्तविकता को समाज के सामने रखने का प्रयास किया है.
आदिम लय-5
उक्त रचना में श्रम करने जा रही दो आदिवासी युवतियों के माध्यम से श्रम के सौन्दर्य को ज्यादा मुखर दिखाने का प्रयास किया है.चेहरे पर आशा का भाव हाथ में आगे की ओर लहराते हसिया व खुरपी के माध्यम से अपने अधिकारों के प्रति लड़ने की तरफ़ एक इशारा है.
आदिम लय-4
उक्त रचना में श्रम, शिकार, संगीत और प्रेम को प्रकृति के साथ तादात्म स्थापित कर आदिवसियों के जीवन की वास्तविकता को समाज के सामने रखने का प्रयास किया है.
आदिम लय-5
उक्त रचना में श्रम-शिकार और संगीत में तादात्म स्थापित कर आदिम संस्कृति की आत्मा को छूने का प्रयास किया है.
क्रमश:
क्रमश:
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khoobsutat
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