Thursday, February 18, 2010

ख्याति प्राप्त अभिनेता और रंगकर्मी निर्मल पांडेय का निधन












हिंदी सिनेमा और नाट्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर निर्मल पांडेय  का आज दिनांक १८ फरवरी २०१० को मुंबई के होली स्पिरिट अस्पताल में निधन हो गया. निर्मल पाण्डेय एक प्रतिबद्ध प्रगतिशील संस्कृतकर्मी थे. जिन्होंने जीवनपर्यंत अपनी रचना और कला क्षमता का उपयोग मनुष्य और समाज के सरोकारों के लिए किया. 
  निर्मल पाण्डेय मुलत:  रंग-कर्मी थे जिन्होंने "जिन लाहौर नही देख्या'' जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नाटकों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया. सिनेमा जगत में शेखर कपूर की 'बैंडिट क्वीन', 'इस रात की सुबह नहीं', ट्रेन टू पाकिस्तान' जैसी फिल्मों में अपनी मुख्य भूमिका के जरिये सिनेमा के कथ्य कथानक और अभिनय की नयी परिभाषाये दीं. बहुत सारे सीरियलों एवं टी वी फिल्मों के जरिये निर्मल ने इस माध्यम में भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी.
  ''क्राफ्ट'' (उसकी समस्त इकाई कला कम्यून, दस्ता, क्राफ्ट फिल्म सोसाइटी) वाराणासी की संकल्पना और संस्थापना में निर्मल का अविस्मरनीय  योगदान है. हमारे लिए कई अभिनय वर्कशाप का संचालन निर्देशन करके और संस्था द्वारा आयोजित होने वाले फिल्मोत्सवो में योजना से लेकर क्रियान्वयन तक अपनी भागीदारी से हमें आधार और दिशा प्रदान की.
निर्मल का निधन पुरे क्राफ्ट परिवार के लिये अपूरनीय व्यक्तिगत क्षति है. निर्मल का निधन पुरे सांस्कृतिक जगत और समस्त कला-संस्कृति-रंग कर्मियों  के लिए एक गहरा सदमा है.
  निर्मल के असामयिक अचानक निधन पर सम्पूर्ण क्राफ्ट परिवार ( कला कम्यून, दस्ता, क्राफ्ट फिल्म सोसाइटी), जन संस्कृति मंच एवंम काशी की समस्त कला-संस्कृति-रंगकर्मियों की ओर से विनम्र और अश्रुपूरित श्रध्दांजलि.

Sunday, February 14, 2010

बारिश में भी कायम रही कलाकारों की "उम्मीदे"

दो दिवसिय इस आयोजन की शुरुआत प्रकृति के एकाएक असंतुलित होने के बावजूद अपने निर्धारित समय पर अस्सी घाट पर हुई.
कला उत्सव की शुरुआत इलाहाबाद से आए वरिष्ट चित्रकार व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अजय जैतली ने रंग-बिरंगे गुब्बारों को आकाश में उड़ा कर की, और  उम्मीदे में आये सभी कलाकारों का अभिवादन किया. जैतली जी ने कला को लोगो तक ले जाने के इस तरीके को विस्तारित करने की बात कहीं. सभी कलाकृतियों को उन्होनें देखा और दस कलाकृतियों को चुना जिन्हें उत्सव के अंतिम दिन सम्मानित किया गया. कला उत्सव में २५०-३०० कला कृतियों का प्रदर्शन हुआ जिसमें बी.एच. यु., विद्यापीठ , गोरखपुर, लखनऊ, इलाहबाद, पटना, जौनपुर, फैजाबाद, छत्तीसगढ़ व चेन्नई,  के कलाकारों ने भाग लिया. 2002 में क्षेत्रीय स्तर पर शुरू किये गए इस प्रदर्शनी ने आज रास्ट्रीय उत्सव का स्वरूप ले लिया है.
इस बार प्रदर्शनी में पांच इन्सटालेशन प्रदर्शित किये गए जो कला जगत के बदलते स्वरूप को बतला रहा है. इसमें सत्ता की राजनीति से लेकर उसके अमेरिका के चरणों में नतमस्तक होने और भारत के ८०% जनता के ऊपर पड़ते बोझ को बखूबी दिखाया गया है. कला कम्यून द्वारा किये गए २० फुट के इन्सटालेशन में आम आदमी के ऊपर लादे गए भागदौड़ और उसके शांति की लालसा के अंतर्विरोधी स्थिति को दिखाया गया है.
शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रम की आगाज पटना से आई 'हिरावल' टीम ने गोरख पाण्डे, महेश्वर, वीरेन, और मुक्तिबोध के गीतों के साथ किया. दर्शको ने इस तरह के गीतों को जो आज के समाज का आइना है हाथों - हाथ लिया और सराहा. जन गीतों के बाद 'सत्यजित रे' निर्देशित 'मुंशी  प्रेमचंद जी' की कहानी पर आधारित फ़िल्म ''सदगति'' का शो हुआ. सत्यजित रे जैसे निर्देशक की नजर से इस फ़िल्म को देखना भी दर्शकों के लिए एक ख़ास अनुभव  रहा.
उत्सव के दुसरे दिन क्राफ्ट की नाट्य- गायन  इकाई 'दस्ता' द्वारा नाटक ''आर्डर-आर्डर'' प्रस्तुत किया गया. यह नाटक भारतीय न्याय प्रणाली के माध्यम से राजनीति मे घुल मिल चुके अपराध और सामप्रदायिकता को बखूबी दिखाती है. सत्ता पर चोट करती हुई नाटक बताती है की भारतीय सत्ता अमेरिका की दलाली में लगी हुई है. नाटक में अंकुर, उदभव, और विवेक ने भूमिका निभाई. श्रुति, विनीता, अंकुर, उदभव, व अर्जुन ने जनगीतों की प्रस्तुती की.
    इस पुरे आयोजन के दौरान दर्शकों की स्थिरता बनी रही और शहर के कई बुद्दिजिवी, कलाकार, साहित्यकार, व आमजनों ने कला उत्सव के इस संगम  में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई मुख्य तौर से क्राफ्ट के अध्यक्ष वी. के. सिंह, महासचिव उदय यादव, इलाहाबाद से के.के.पांडे, मीना राय, लखनऊ से अपूर्व, गोरखपुर से अनुज, मनीष, छत्तीसगढ़ से रंधावा प्रसाद, गिरिधारी साहू सहित शहर से काशीनाथ सिंह, शाहीना रिजवी, प्रो.बलराज पांडे, प्रणाम सिंह, प्रो. वशिष्ट अनूप, आदि गणमान्य लोग मौजूद रहे