कवि त्रिलोचन शास्त्री की कविता-"चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती" के कुछ अंश
3 comments:
Anonymous
said...
बहुत अच्छी कविता है। इसे पढकर अच्छा लगा। ब्लागवाणी से पता चला कि कला कम्यून ने भी ब्लाग पर कार्य शुरु कर दिया। बहुत अच्छा लगा। मुझे आपके पोस्टर हमेशा से पसन्द रहे हैं और मेरे पास सारे की तो नहीं पर कुछ की कॉपियां भी हैं। कला कम्यून से ऐसे भी जुडा जा सकेगा ... बहुत-बहुत बधाई! नूतन मौर्या
ऐसे समाज में जब कला या तो पूरा बाजार हो गई हो या दो जून की रोटी का सामान या फिर चन्द शौकिया मिजाज़ के चटखारे. जब कला अपनी जड़ो-जमीन से उखड़ रही हो, ऐसे मुश्किल दौर में युवा कलाकारों का संगठन " कला - कम्यून " कला को एक बार फिर अपनी जमीन से रोपने का प्रयास है.
जहां कला किसी सनक, मजबूरी या शौक से नहीं बल्कि जीवन के खरे अनुभव और जद्दोजहद से उपजेगी, जिसमें बीते हुए कल का अनुभव, आज की दृष्टि और आनेवाले बेहतर कल का सपना हो.
" कला - कम्यून " एक समर्पित प्रयास है - रचना का जीवन और जीवन का समाज के साथ लयात्मक रिश्ता बनाने का, जहां कला राजमहल की खिड़की पर खिलने वाला फूल नहीं हमारे, आपके, सबके जीवन का हिस्सा हो.
3 comments:
बहुत अच्छी कविता है। इसे पढकर अच्छा लगा।
ब्लागवाणी से पता चला कि कला कम्यून ने भी ब्लाग पर कार्य शुरु कर दिया। बहुत अच्छा लगा। मुझे आपके पोस्टर हमेशा से पसन्द रहे हैं और मेरे पास सारे की तो नहीं पर कुछ की कॉपियां भी हैं। कला कम्यून से ऐसे भी जुडा जा सकेगा ...
बहुत-बहुत बधाई!
नूतन मौर्या
कविता बहुत अच्छी लगी……बहुत आभार
क्या बात है,हमें आपसे यही उम्मीद रहती है थोडा ललित कला पर भी पोस्ट होना चाहिये,जमे रहिये, शुक्रिया.
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