Wednesday, February 25, 2009

"अस्सी पर छायी उम्मीदें 2009"

शहर के युवा कलाकारों की संस्था 'कला कम्यून, क्राफ्ट' द्वारा दो दिवसीय उम्मीदें 2009 कला उत्सव सम्पंन हुआ. उत्सव पर कलाकारों ने घाट को झंडे-पतंगी और कलाकृतियों से सजा दिया . चारों ओर रंग-ही-रंग बिखरे थे.... बसंत सा माहौल था.
कला उत्सव में सबसे पहले कलम और कूंची के सिपाही स्व. सुशील त्रिपाठी को अश्रूपुरित श्रध्दांजलि दी गई. दो मिनट का मौन रखा गया. इस वर्ष उत्सव को स्व. सुशील जी के विरासत के रूप में मनाया गया. इसी अस्सी पर सुशील जी ने इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के खिलाफ सड़क पर पोस्टर प्रदर्शनी की शुरूआत की थी. सत्ता के खिलाफ उनकी मुहिम 'प्रतिशोध के खिलाफ प्रतिरोध का सृजन' उम्मीदें 2009 कला उत्सव के रूप में निरंतर जारी है. कला उत्सव का उद्घाटन स्मृति स्तंभ जिसे आम आदमी के प्रतिरोध के रूप में बनाया गया , उस पर गुब्बारा उड़ाकर जन संस्कृति के महासचिव प्रणय कृष्ण ने किया. कला उत्सव में इस वर्ष पूर्वांचल के विभिन्न हिस्सों के साथ ही उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के कलाकारों की भागीदारी रही. छत्तीसगढ़ के राजेन्द्र ठाकुर ने लाल कुर्सियों से भव्य इन्सटालेशन किया. वेलेन्टाइन डे पर प्रेस के पक्ष में उनकी यह कृति कुर्सियों के संयोजन में जीवन के उतार-चढ़ाव का संजीदा प्रदर्शन थी. कलाकृतियों में जीवन के विभिन्न पक्ष दिखें.
इसबार उत्सव में विशिष्ट कवियों की कविताएं भी शामिल की गई है, दिनेश कुमार शुक्ला, "धूमिल - और जो चरित्रहीन है, उसके रसोई में पकने वाला चावल कितना महीन है", "कैफी आजमी - इक कदम जो बढ़ता है तू मंजिल की तरह, इक दिया और सरे राह आलम जलता है" साथ ही नज़र कब्बानी, नावारुण भट्टाचार्या, मंगलेश डबराल आदि कवियों की पोस्टर लगे.
कला उत्सव की एक खासियत सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रहा. पटना की मशहूर नाट्य टीम हिरावल ने जहां अपने जनगीतों से क्रांतिकारी चेतना के साथ सत्ता पर करारा व्यंग्य किया वही लोकगीतों से लोगों को उनकी ताकत का अहसास कराया.
उम्मीदें 09 कला उत्सव के दूसरे दिन भी विदेशी और शहर के लोगों का तांता लगा रहा. इस वर्ष उम्मीदें 09 कला उत्सव में 10 शीर्ष सम्मान दिया गया इसमें बनारस को 5, छत्तीसगढ़ 2, उङीसा 1, फैजाबाद और दिल्ली के कलाकारों को 1-1 सम्मान मिला. यह सम्मान चित्रकला, मूर्तिकला, छायाचित्र, ड्राइंग, और इन्सटालेशन कृतियों में दिया गया. मूर्तिशिल्प में स्मृति ने बिल्ली की आकृति को गढ़ा है जो हमारी जीवों के प्रति संवेदना का ....ओतक है. प्रकृति के नष्ट होने के साथ जहां एक ओर मौसम प्रभावित हो रहा है. वही जीव जगत पर असर पङ रहा है. मुर्तिशिल्प में प्रशान्त कु. विश्वकर्मा ने इन्हीं भावनाओं को गढ़ा है. लाल कुर्सियों से संयोजन कर छत्तीसगढ़ के राजेन्द्र ठाकुर व धनंजय पाल ने कुर्सी के खेल को दिखाया है. इसमें प्रेम और घृणा की संवेदना को पकङा है जिसमें पानी के अभाव के बीच जलती लौ का छायांकन है. ड्राइंग में उत्कर्ष आनंद ने अक्षशंकण के माध्यम से बनारस की छवि पकङी है यह एक अनूठा प्रयोग है.
चित्रकला में दिल्ली के रंजित सिंह की पेन्टिग ने दर्शकों को अपनी ओर खींचा. इसमें चाय वाला बच्चा केतली के साथ ध्यान की मुद्रा में है. छत्तीसगढ़ की पिनाकी मुखर्जी ने "सौ-सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज करने" का पोट्रेट किया. उड़ीसा के श्रीमन अंशुमन ने नारी जीवन के संघर्ष और विद्रुप स्थिति को चित्रित किया. वाराणसी के अहसान एम. रिजवी ने भी नारी की एक संवेदनशील सौन्दर्य को पकङा है. "उम्मीद" जिसपर दुनिया कायम है. कला उत्सव के सांस्कृतिक संध्या में, क्राफ्ट की नाट्य एवं गायन इकाई "दस्ता" द्वारा गीत और नाट्क "मास्टर-माइंड" का मंचन किया गया. और अवधेश ने बुश को पड़े जूते पर कविताओं का पाठ किया.
कलाकारों को सम्मान पत्र क्राफ्ट के अध्यक्ष वी. के. सिंह और समकालीन जनमत के प्रबंध संपादक के. के. पाण्डेय द्वारा दिया गया. धन्यवाद ज्ञापन में कला कम्यून के संयोजक अर्जून ने अस्सी वासियों का धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की.

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