युवाओं से बदला ले रहा है संघ परिवार
"मंदी और आतंकवाद से जूझते भारत की तस्वीर निराशा की नहीं बल्कि युवाओं की उम्मीदों से लवरेज है. वसंत युवाओं का मौसम है. युवावस्था के उत्सव का मौसम है." भारत की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवाओं का है जिनकी कोमल भावनाओं और भविष्य की उम्मीदों के साथ भारत की राजसत्ता खिलवाड़ कर रही है. एक ओर मुंबई में उत्तर भारतीय नौजवानों पर ठाकरे खानदान हमला कर रहा है. राहुल राज का फर्जी एन्काउन्टर हुआ. वहीं बुजुर्गो के नेतृत्व वाला संघ संप्रदाय वैलेन्टाइन डे या मंगलोर में पब में युवतियों की भागीदारी के खिलाफ हिंसक अभियान चला रहा है. संघ संप्रदाय को यह एहसास है कि भारत के युवाओं की उम्मीदें और सपने संघ के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाते. इसी काशी में रहते हुए महाकवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा था -
काम मंगल से मंडित श्वेय सर्ग, इच्छा का है परिणाम;
तिरस्कृत कर उसको तुम भूल बनाते हो असफल भवधाम.
जाहिर है कि प्रसाद जी प्रेम की इच्छा को सृष्टि के मंगल का उदगम मानते थे. आज संघ परिवार युवाओं की प्रेम भावना के खिलाफ है. हमला बोलकर सृष्टि और संस्कृति पर ही हमला कर रहा है. इस हमले का सृजनात्मक प्रतिरोध युवावर्ग का दायित्व है.
गोविन्दाचार्य चिल्लाते रह गए लेकिन संघ ने राजग सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था और कानूनी ढ़ांचे के अमेरीकीकरण का अनुमोदन करना नहीं छोङा. अमरीकापरस्त संघ परिवार विदेशी पूंजी के साथ गठजोड़ को छिपाने और देशी दिखने की खातिर वेलेन्टाइन डे पर हमले जैसे प्रतीकात्मक, हिंसक कार्यवाई कर रहा है. वह चाहता है कि युवा प्रेम न करें बल्कि नफरत करना सीखें, धर्मस्थल तोड़े, उड़ीसा और गुजरात जैसे जनसंहारों का हिस्सा बनें. यही युवाओं के लिए उनका कार्यक्रम है. इसका पुरजोर प्रतिरोध युवा ही करेंगे.
संस्कृति का क्षेत्र उदान्त होता है. अच्छे विचार और भावनाएं हर कहीं से ली जा सकती है. वेलेन्टाइन का नाम पश्चिमी है लेकिन उस संत ने प्रेम की जिस भावना का संदेश दिया वह सार्वभौम है. इसी तरह बसंत ऋतु और यौवन भी सभी संस्कृतियों का हिस्सा है. प्रसाद जी ने चंद्रगुप्त नाटक में यूनानी और भारतीय इन दो युद्धरत कौमो के बीच सामंजस्य और प्रेम का रिस्ता कायम कराया है. चंद्रगुप्त का विवाह यूनानी सुंदरी कार्नेलिया से कराया है. क्या संघ वाले प्रसाद से ज्यादा भारतीय संस्कृति जानते है ?
आज की कला प्रदर्शनी बनारस में स्पदित बहु-सांस्कृतिक भारत उसके सामान्य नागरिक, स्त्रियों और बच्चों की उम्मीदों और सपनों को अभिव्यक्त करती है.
"मंदी और आतंकवाद से जूझते भारत की तस्वीर निराशा की नहीं बल्कि युवाओं की उम्मीदों से लवरेज है. वसंत युवाओं का मौसम है. युवावस्था के उत्सव का मौसम है." भारत की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवाओं का है जिनकी कोमल भावनाओं और भविष्य की उम्मीदों के साथ भारत की राजसत्ता खिलवाड़ कर रही है. एक ओर मुंबई में उत्तर भारतीय नौजवानों पर ठाकरे खानदान हमला कर रहा है. राहुल राज का फर्जी एन्काउन्टर हुआ. वहीं बुजुर्गो के नेतृत्व वाला संघ संप्रदाय वैलेन्टाइन डे या मंगलोर में पब में युवतियों की भागीदारी के खिलाफ हिंसक अभियान चला रहा है. संघ संप्रदाय को यह एहसास है कि भारत के युवाओं की उम्मीदें और सपने संघ के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाते. इसी काशी में रहते हुए महाकवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा था -
काम मंगल से मंडित श्वेय सर्ग, इच्छा का है परिणाम;
तिरस्कृत कर उसको तुम भूल बनाते हो असफल भवधाम.
जाहिर है कि प्रसाद जी प्रेम की इच्छा को सृष्टि के मंगल का उदगम मानते थे. आज संघ परिवार युवाओं की प्रेम भावना के खिलाफ है. हमला बोलकर सृष्टि और संस्कृति पर ही हमला कर रहा है. इस हमले का सृजनात्मक प्रतिरोध युवावर्ग का दायित्व है.
गोविन्दाचार्य चिल्लाते रह गए लेकिन संघ ने राजग सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था और कानूनी ढ़ांचे के अमेरीकीकरण का अनुमोदन करना नहीं छोङा. अमरीकापरस्त संघ परिवार विदेशी पूंजी के साथ गठजोड़ को छिपाने और देशी दिखने की खातिर वेलेन्टाइन डे पर हमले जैसे प्रतीकात्मक, हिंसक कार्यवाई कर रहा है. वह चाहता है कि युवा प्रेम न करें बल्कि नफरत करना सीखें, धर्मस्थल तोड़े, उड़ीसा और गुजरात जैसे जनसंहारों का हिस्सा बनें. यही युवाओं के लिए उनका कार्यक्रम है. इसका पुरजोर प्रतिरोध युवा ही करेंगे.
संस्कृति का क्षेत्र उदान्त होता है. अच्छे विचार और भावनाएं हर कहीं से ली जा सकती है. वेलेन्टाइन का नाम पश्चिमी है लेकिन उस संत ने प्रेम की जिस भावना का संदेश दिया वह सार्वभौम है. इसी तरह बसंत ऋतु और यौवन भी सभी संस्कृतियों का हिस्सा है. प्रसाद जी ने चंद्रगुप्त नाटक में यूनानी और भारतीय इन दो युद्धरत कौमो के बीच सामंजस्य और प्रेम का रिस्ता कायम कराया है. चंद्रगुप्त का विवाह यूनानी सुंदरी कार्नेलिया से कराया है. क्या संघ वाले प्रसाद से ज्यादा भारतीय संस्कृति जानते है ?
आज की कला प्रदर्शनी बनारस में स्पदित बहु-सांस्कृतिक भारत उसके सामान्य नागरिक, स्त्रियों और बच्चों की उम्मीदों और सपनों को अभिव्यक्त करती है.
6 comments:
प्रणयजी की बातें अच्छी हैं, लेकिन उनसे एक सवाल है अगर वह अमेरिका के इतने ही विरोधी हैं तो उससे जुड़ी हर चीज से किनारा क्यों नहीं कर लेते?
मंगलौर में श्रीराम सेना वालों ने जो किया इससे कहीं ज्यादा बदतर तो सिंगूर में वामपंथियों ने वहां से गरीब मजदूरों के साथ किया था। इस पर प्रणयजी का क्या कहना है?
भारत के कम्यूनिस्ट सबसे पोंगापंथी जमात है। उन्होने भारत के हितों के आगे सदा रूस, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हितों को प्राथमिकता दी है। कम्युनिस्टों के चलते ही भारत पिछड़ गया, बंगाल पिछड़ गया - वैसे ही जैसे रूस और पूर्वी यूरोप सैकड़ों साल पीछे चले गये।
कम्युनिज्म के विचारधारा की असफलता और असत्यता सिद्ध हो जाने के बाद कम्युनिस्ट कुछ भी सोच नहींपा रहे हैं। उनके सामने बिल्कुल अंधेरा छाया हा है। इसी लिये वे अब उल्टी-सीधी हरकतें कर रहे हैं।
अनुनाद सिंह जी की टिप्पणी को "रिपीट" किया जाये… इससे ज्यादा माइक्रो टिप्पणी क्या करूं…
बन्धुओं कम्यूनिस्ट पार्टी और संघ परिवार के इतिहास की चर्चा फिर कभी करेंगे.लेकिन सांस्कृतिक संदर्भों में संघ वालों से ज्यादा पिछड़ी मानसिकता शायद ही किसी की हो. उनका बस चले तो वो भारत को भारतीय संस्कृति के नाम पर सैकड़ो वर्ष पिछे ढकेल दे.
लगता है अनुनाद ने बात को दिल पर ले लिया है.प्रणय जी कम्यूनिस्ट हो या साधारण व्यक्ति बात तो उन्होने सही कही है.पब्लिक के सामने भाषण देने में शायद प्रणय जी ने सरल और नरम शब्दों का प्रयोग किया है मेरे ख्याल से १४ फरवरी को लेकर संघ का जो अभद्रता अभियान है उसका तो और कड़े शब्दो से विरोध होना चाहिए.
anunaji ki bat kuch samajh me nahi aa rahi ki...wo communisto ki kis jamat ki bat kar rahe hai......un communisto ko chod de...jo singur me the....aur mere hisab se abhi ke samay me kafi badlav aa gaya hai...us badlav ko pahchaniye....sirf sunne ki aadat se bahar nikalna chahiye....
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